Tuesday, August 1, 2023

Empowering Dreams: Rebuilding My Family's Future

Dear Supporters,

I hope this message finds you well. My name is Amit Singh Kushwaha, and I am writing to you today with a humble heart and a deep sense of determination to create a brighter future for my family. Our journey has been challenging, marked by setbacks and financial struggles, but with your compassion and support, I believe we can overcome these hurdles and find a path towards stability and prosperity.

A few years ago, I took a leap of faith and started a small business, driven by the dream of providing a better life for my beloved wife and our precious 6-year-old daughter. Unfortunately, despite my relentless efforts and dedication, unforeseen circumstances and market challenges led to the loss of my business, leaving us in a difficult financial situation.

As the sole breadwinner of our family, I am facing the harsh reality of not being able to fulfill even our basic needs. It pains me deeply to see my wife and daughter make sacrifices for the sake of our survival. My daughter's innocent eyes remind me every day of the responsibility I have to provide her with a safe and nurturing environment, one filled with opportunities to learn, grow, and dream.

Through this crowdfunding campaign, I am seeking your support to help us get back on our feet and rebuild our lives. The funds raised will be used to cover essential living expenses, including food, shelter, and medical needs, as well as educational expenses for my daughter.

Your contribution, no matter how big or small, will make a significant difference in our lives. Here are some ways you can help:

1. Donate: Your financial support will provide immediate relief and security for my family during these trying times.

2. Share: Even if you are unable to donate, sharing our story with your friends, family, and social networks can amplify our reach and increase the chances of reaching our fundraising goal.

3. Offer Words of Encouragement: Kind words and messages of support mean the world to us, and they keep us motivated to keep going despite the challenges we face.

We understand that times are tough for everyone, and any assistance you can provide will be met with immense gratitude. It is only with the collective kindness and compassion of people like you that we can hope to rebuild our lives and secure a brighter future for our family.

We promise to keep you updated on our progress and how your contributions are being used. Together, let's turn this difficult chapter into a tale of resilience, hope, and triumph.

Thank you from the bottom of my heart for taking the time to read our story and for considering supporting us during these challenging times. Your generosity will never be forgotten, and we look forward to the day when we can pay it forward and help others in need.

With love and gratitude,

Amit Singh Kushwaha

Mobile : +91-9300939758

email : amitsk68@gmail.com


Bank Details for your contribution :

By UPI ID : amitsk68@idbi

By Bank account transfer

Name : AMIT SINGH KUSHWAHA

Bank Account Number : 0422104000276696

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Saturday, August 21, 2010

हकलाहट : दिल पे मत ले यार . . . !


समाज का हकलाहट के बारे में बहुत ही गलत नजरिया देखने को मिलता है. आमतौर पर हकलाने वालों का मजाक उड़ाया जाता है जिससे वे धीरे-धीरे अपने ही परिवार और समाज से अलग होने लगते हैं.

दुःख उस समय और ज्यादा होता है जब हिंदी फिल्मों में हकलाहट को हंसी के साधन के रूप में परोसा जाता है. आजकल बॉलीवुड की अधिकतर फिल्मों में कहीं न कहीं पात्रों से हकलाहट का अभिनय करवाने की परंपरा सी चल पडी है. शाहरूख खान ने तो कई फिल्मों में हकलाहट का अभिनय किया है और हकलाहट वाले उनके डायलाग बहुत मशहूर रहे हैं.

पर यहाँ एक अहम् सवाल यह है की आखिर कब तक हकलाहट दोष को मनोरंजन के रूप में समाज उपयोग करता रहेगा. इस दिशा में मीडिया को आगे आना चाहिए. हमारा समाज फिल्मों और मीडिया से बहुत कुछ सीखता है और उससे काफी हद तक प्रभावित भी होता है, इसलिए फिल्मों, टीवी धारावाहिकों में हकलाहट को हँसी के रूप में प्रस्तुत करना बंद करना चाहिए. और जहाँ तक संभव हो सके हकलाहट दोष के प्रति सकारात्मक बातें दिखने से समाज में सही सोच का विकास होगा.

और हाँ... अगर आपको देखकर कोई हँसता भी है तो दिल पे मत ले यार . . . अकसर हम लोग स्पीच की कई तकनीको का इस्तेमाल करने में संकोच करते हैं की सामने वाला क्या सोचेगा. मै यहाँ कहना चाहता हूँ की सामने वाला हँसने के के अलावा और क्या करेगा? स्पीच की तकनीको का इस्तेमाल कर सही तरीके से बोलने की कोशिश करने पर आपको कोई थप्पड़ नहीं मारेगा और और ना ही सजा देगा, लेकिन बार-बार गलत तरीके से बोलकर और संकोच कर हम लोग जरूर अपनी वाणी को ख़राब करते है.

आपकी हकलाहट को सिर्फ आप ही दूर कर सकते हैं.

मशहूर कवि दुष्यंत कुमार ने कहा है :-

कौन कहता है आसमान से सुराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों...

- अमितसिंह कुशवाह,
स्पेशल एजुकेटर (एच.आई.)
इंदौर (भारत)
मोबाइल : 0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8

Sunday, August 15, 2010

" हाँ ! मैं हकलाता हूँ . . . ! "

14 अगस्त 2010 को इस ब्लॉग पर मेरी पोस्ट पर एक साथी ने मुझे फ़ोन कर बताया की उनके परिजन शादी के लिए लड़की देख रहे हैं, पर क्या अपने होने वाले जीवनसाथी से अपनी हकलाहट की समस्या के बारे में खुलकर बात कर लेना उचित होगा? इस पर मेरी राय यह थी की हाँ, अपने होने वाले लाइफ पार्टनर से इस बारे में बात करने से जीवन की चुनौतिओं का सामना करने में आसानी होगी और बेहतर जीवनसाथी के चुनाव में भी सहायता मिलेगी.

अकसर हम लोग अपनी हकलाहट की समस्या को छिपाने की कोशिश करते हैं, और कुछ हद तक हम इसमे कामयाब भी हो जाते हैं. मेरे कई परिचित ऐसे हैं जिनसे काफी समय से परिचय है फिर भी उन्हें यह नहीं मालूम की मैं हकलाता हूँ. जहाँ तक मेरा अनुभव रहा है की हम अपनी हकलाहट की समस्या से बेवजह डरते हैं. आमतौर पर सिर्फ 20 प्रतिशत लोग ही हमारी समस्या का मजाक बनाते हैं, अधिकतर तो हमारी समस्या को गंभीरता से लेते हैं, और पूरा सहयोग करते हैं. तो हमें अब से उन 80 प्रतिशत लोगों पर ही ध्यान देना है जो हमारे प्रति सहयोगात्मक रवैया अपनाते हैं.

सबसे पहले तो हमें अपनी बात जल्दी से कह देने की आदत से छुटकारा पाना होगा. पहले हमें सामने वाले की बात को पूरा सुनना है, उसके बाद ही अपनी बात बोलनी है. बात करते समय आराम से बार-बार नाक से सांस लेकर बोलना चाहिए. अपने बोलने की गति को थोडा कम रखना चाहिए.

जिस प्रकार आँखें कमजोर होने पर लोग चश्मा लगते हैं, कान से कम सुनाई देने पर हियरिंग एड लगते हैं, ठीक उसी तरह हमें अपनी हकलाहट की समस्या से शरमाने की जरूरत नहीं है, इसे भी सामान्य तौर पर ले. क्योकि लगभग सभी लोग कभी ना कभी हकलाते ही हैं. मंच पर जाने से पहले कई लोगों के पसीने छूट जाते हैं, लेकिन उनका डर दूर होते ही वे एक अच्छे वक्ता बन जाते हैं, ठीक इसी तरह हमें अपना डर दूर भगाना है.

अपनी हकलाहट की समस्या से हमें लड़ना नहीं हैं, बल्कि इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार करना है. लोगों से कहना है- " हाँ ! मैं हकलाता हूँ . . . ! " पर हकलाहट पर जल्द ही विजय पा लूँगा.

जय भारत . . . !

- अमितसिंह कुशवाह,
स्पेशल एजुकेटर (एच.आई.)
इंदौर (भारत)
मोबाइल : 0 9 3 0 0 9 - 3 9 7 5 8

Saturday, August 22, 2009

विकलांग नही विशेष नागरिक कहिए . . .

हमारे देश में शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर लोगों के प्रति समाज का नजरिया ज्यादा सकारात्मक नही रहा है। इन व्यक्तिओं की कमियों के कारण इन्हे हर स्तर पर उपेछित किया जाता है।

भारतीय संविधान में विकलांगजनों को समान अवसर और भागीदारी दिलाने की बात कही गई है। समय समय पर विभिन्न योजनाओं और कानूनों के माध्यम से उन्हें समाज के मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया गया है और आज भी जारी है।

तमाम कोशिशों के बाद भी विकलांगों के प्रति आम समाज का नजरिया नही बदल पाया है। उन्हें कई तरह के अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया जाता है।

आज से लगभग ३ साल पहले भोपाल के एक अखबार से मुझे विकलांगों के लिए एक साप्ताहिक कालम लिखने का अवसर प्राप्त हुआ था। उस समय काफी सोच विचार के बाद उस कालम का नाम 'स्पेशल सिटीजन' रखा। शायद भारत और विश्व में पहली बार स्पेशल सिटीजन शब्द का उपयोग मैंने ही किया।

सरकारी और मीडिया के स्तर पर विकलांगों के लिए हिन्दी में 'विशेष नागरिक' और अंग्रेजी में 'Special Citizen' शब्द का इस्तेमाल किया जाए तो यह सम्मानजनक होगा।

- अमितसिंह कुशवाह
०९३००९३९७५८
९३००९३९७५८

Friday, July 17, 2009

विकलांगों को सहानुभूति नही, समानुभूति की दरकार है

प्रकृति ने जिनके शरीर में कोई कमी छोड़ दी उन्हें विकलांग कहकर उनके दुर्भाग्य के लिए प्रकृति के अन्याय को दोषी माना जाया है। लेकिन सच तो यह है की प्रकृति ने इनके साथ जितना बड़ा अन्याय किया उससे कहीं बड़ा अन्याय हमारा समाज करता है।

वे अपनी एक छमता खोकर भी शेष छमताओं से अपना भाग्य संवार सकते हैं लेकिन समाज उन्हें दया का पात्र बनाकर रखने पर मानो आमादा रहता है। उन्हें कमजोर और नकारा समझा जाता है।

परिवार और समाज का नजरिया विकलांगों के प्रति गैर जिम्मेदाराना होता है। उन्हें दरकिनार और शोषित किया जाता है।

सच तो यह है की विकलांग भी आम लोगों की तरह काम कर सकते हैं। सहायक उपकरणों और तकनीकी साधनों के बदौलत वे लगभग सभी प्रकार के कार्य कुशलता से कर सकते हैं।

विकलांग बच्चों को सीखने के लिए विशेष प्रकार के साधनों की जरुरत कुछ हद तक होती है। इनके लिए स्पेशल स्कूल होते हैं। जहाँ पर वे आसानी से सीख सकते हैं।

बस, जरुरत है समाज के सकारात्मक व्यवहार और सहयोग की। विकलांगों को सहानुभूति नही, समानुभूति की दरकार है। उन्हें उनके अधिकार चाहिए दया नही।

- अमितसिंह कुशवाह

( आप विकलांगता या विकलांगों के बारे में किसी प्रकार की कोई जानकारी चाहते हैं तो मुझसे संपर्क कर सकते हैं।)

मोबाइल : 09300939758

Sunday, March 22, 2009

लोकसभा चुनाव : कहाँ है विकलांग

लोकसभा चुनाव में कई मुद्दों पर पर सत्ताधारी दल विकास की बात और विरोधी पार्टी सरकार की असफलता को जनता के सामने लाकर वोटर को अपनी ओर करने के लिए तत्पर हैं। इन सबके बीच समाज के एक वर्ग को हंसिये पर रखा जा रहा है।
विकलांगों को ना सिर्फ अपने परिवार बल्कि समाज और सरकार की घोर उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है। विकलांगो के कल्याण के लिए सरकार के पास कोई कारगर योजना नही है। चुनावों में कई मुद्दे उठाए जाते है लेकिन विकलांगों की कभी कोई बात नही करता। विकलांगों को कभी प्रत्यासी के रूप में चुनाव में नही उतारा जाता, आखिर क्यों ? शायद इसलिए की पार्टियों को विकलांगो में वोट बैंक नही दिखाई देता ? क्या कभी ऐसा भी होगा जब विकलांगों की सुध ली जयेगी ? उन्हें विकास के समान अधिकार कब मिलेंगे ये सारे सवाल ऐसे हैं जिनका जबाव किसी के पास नही है ?
- अमितसिंह कुशवाह
मो.: 093009-39758





Wednesday, November 19, 2008

बधिरता : एक चुनौती

श्रवण शक्ति या सुनने संबंधी विकलांगता (जिसमें बहरापन भी शामिल है) का अर्थ है सुनने में परेशानी होना यह स्थायी हो सकती है या फिर इसमें उतार चढाव भी आ सकता है। इससे बच्चे के शैक्षिक प्रदर्शन । उसकी भाषा और उसकी सुनने बोलने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

यह विकलांगता विभिन्न स्तर की हो सकती है जिसमें बहुत कम, मध्यम, ज्यादा, बहुत ज्यादा या पूरी तरह भी हो सकती है। विकलांगता के स्तर की श्रेणी सुनने की शक्ति के नुकसान पर आधारित होती हैं। यह प्रत्येक कान में अलग भी हो सकती है या फिर दोनों कानों से कुछ भी सुनाई नहीं दे सकता है। अगर यह एक कान में होती है तो इसे यूनीलैट्रल और अगर दोनों कानों में होती है बाइलैट्ररल कहा जाता है।
विकलांगता जन्म से या फिर बाद में भी हो सकती है। अगर यह जन्मजात और दोनों कानों में होती है तो इससे सामान्य भाषा और बोलने के विकास में परेशानी होती है। जन्म के बाद यह विकलांगता जीवन के किसी भी समय धीरे धीरे या एकदम हो सकती है और इससे भी भाषा के विकास और बोलने में कठिनाई होती है। इस विकलांगता को आमतौर से तीन भागों भाषा में बांटा जाता है – प्रीलिंगुअल यानी भाषा के विकास और बोलने से पहले, पेरीलिंगुअल यानी भाषायी कौशलों को सीखने की प्रक्रिया तथा बोलेने की क्षमताओं के दौरान तथा पोस्टलिंगुअल अर्थात भाषायी विकास हासिल करने और बोलना सीखने के बाद पैदा हुई विकलांगता।

भारत में प्रतिदिन ५० से अधिक बच्चे बधिर पैदा होते है। प्रतिवर्ष लगभग २० हजार बधिर बच्चों की संख्या में इजाफा होता है बधिरता संबंधी सर्वेक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि लगभग १० प्रतिशत भारतीय किसी न किसी प्रकार की बधिरता के शिकार है। जन्मजात बधिरता का एक हद तक इलाज संभव है बशर्तें समय रहते इसका पता चल जाए। यदि बच्चे में बधिरता का संशय हो तो इसके लिए ऑडियों मेट्री में जांच कराई जानी चाहिए। आजकल ब्र्रेन इवोक्ड रेस्पोन्स ऑडियों मेट्री (बेरा) की सुविधा उपलब्ध है। इस जांच से नवजात शिशु ही नहीं, सात माह पश्र्चात गर्भस्थ शिशु में भी बधिरता का पता चल सकता है। ब्रेन इवोक्ड रेस्पान्स ऑडियों मेट्री द्वारा बच्चे की श्रवण क्षमता का आकलन कर बच्चे में उचित समय पर श्रवण मंत्रों से सुनने की क्षमता विकसित की जा सकती है। कोकलियर इम्पलांट शल्य चिकित्सा द्वारा बधिरता का सफलता पूर्वक इलाज किया जा सकता है। वयस्क व्यक्ति में बधिरता के प्रमुख कारणों में कान में मैल जमना, कान या मस्तिष्क में किसी प्रकार की चोट। बाहरी या अंदरूनी, जीवाणु एवं वाइरल संक्रमण तथा ध्वनि प्रदूषण प्रमुख है। आज बढता हुआ ध्वनि प्रदूषण, श्रवण क्षमता पर घातक प्रभाव पहुंचा रहा है। अत: ध्वनि प्रदूषण पर निंयत्रण बेहद आवश्यक है वृद्वावस्था में भी शने: शनै: श्रवण क्षमता का हास होता है।
किसी भी प्रकार के बच्चे या वयस्क के लिए क्या-क्या हों सकता है इसकी जानकारी के लिए आप मुझसे संपर्क कर सकते हैं।

यह एक प्रयास है ताकि आपको विकलांग व्यक्ति के बेहतर जीवन के रास्ते की सही जानकारी मिल सके।

आप कभी भी हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करें - 093009-३९७५८

- अमितसिंह कुशवाह